{ May God Bles You All}

Tuesday, December 14, 2010

मासूम की पुकार...........



























सोचती हूँ कि आज आज़ाद हूँ मैं,
लेकिन फिर भी डर-डर कर आगे बढ़ पाती हूँ मैं.
खौफ में घर से बाहर निकलना,
बस यूँ ही सहमी हुई सी रह पाती हूँ मैं.
कहने को तो मैं भी अब आज़ाद हूँ लेकिन,
न जाने क्यूँ, आज भी, रौशनी में,
अपनी ही परछाई से डर जाती हूँ मैं.

काली भयावह रातों में भी अब मुझे,
बस यही डर सताता है कि,
क्या होगा कल फिर से इसी गरीबी में,
बस यही सोचकर रात भर आँखों से नीर बहाती हूँ मैं,
हर पल साहूकारों की मार और फटकार से,
अखियों को जलमग्न कर जाती हूँ मैं,
कहने को तो इस देश में आज़ाद हूँ मैं भी,
न जाने क्यूँ, आज भी, रौशनी में,
अपनी ही परछाई से डर जाती हूँ मैं.

स्कूल जाते, पानी भरने या काम पर जाते,
यही ख्याल आता है अब तो,
क्या ले जायेगा मुझे भी उठाकर बीच रास्ते से कोई,
डर कर फिर धीरे-धीरे चल पाती हूँ मैं,
डर कर भी जल्दी से आगे बढ़ना चाहा,
लेकिन फिर भी बढ़ नहीं पाती हूँ मैं,
सहेलियां कहती है कि आज़ाद हैं हम भी,
लेकिन न जाने क्यूँ, आज भी, रौशनी में,
अपनी ही परछाई से डर जाती हूँ मैं.

ब्लात्कार और दरिन्दगी की हदें,
ख़बरों में रोज़ पढ़ लेती हूँ मैं,
कहाँ से आये फिर उम्मीद की किरण,
इसी बात को फिर दिल में दबा लेती हूँ मैं,
बेटी, बहन, पत्नी और माँ,
सब रिश्तों को निभाती हूँ मैं,
अपने मन कि उलझन को फिर भी,
किसी को न कह पाती हूँ मैं,
अम्मू कहती है कि आज़ाद है हम,
लेकिन न जाने क्यूँ, आज भी, रौशनी में,
अपनी ही परछाई से डर जाती हूँ मैं.

                                          (गोविन्द सलोता)        

11 comments:

  1. बस यूँ ही सहमी हुई सी रह पाती हूँ मैं.
    कहने को तो मैं भी अब आज़ाद हूँ लेकिन,
    न जाने क्यूँ, आज भी, रौशनी में,
    अपनी ही परछाई से डर जाती हूँ मैं.

    बहुत सुंदर भाव...भाव अच्छे हो तो कविता की जान बनी रहती है...एक शब्द खटका है दबोचना...मतलब बलपूर्वक कब्जा करना...मन की जहां तक बात है उसे खुद दबाया जाता है, मारा जाता है..उमंगों, हसरतों, इच्छाओं को भी दबाया जाता है....ज्यादा दुखी होने पर हसरतों को दफनाया जा सकता है पर दबोचा नहीं जा सकता...उम्मीद है बुरा नहीं मानिएगा....

    ReplyDelete
  2. चित्र बहुत अच्छे हैं...ये हकीकत भी हैं...आज भी पढ़ाई की रुचि रखने वाली बच्चियां किस तरह से पढ़ पाती है यह हमें आस-पास ही देखने को मिल जाएगा....

    ReplyDelete
  3. very heartfelt....i appreciate your thinking this way
    :)

    ReplyDelete
  4. एक लडकी की व्यथा को बखूबी उभारा है ....चित्रों के साथ रचना अच्छी लगी ..

    ReplyDelete
  5. आपकी पोस्ट की चर्चा कल (18-12-2010 ) शनिवार के चर्चा मंच पर भी है ...अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव दे कर मार्गदर्शन करें ...आभार .

    http://charchamanch.uchcharan.com/

    ReplyDelete
  6. व्यथा अभिव्यक्त करती यथार्थपरक प्रस्तुति!

    ReplyDelete
  7. chitrankan ke madhyam se bhawa abhibyakti ki hai....anupam hai........badhai ho...bhut sundar

    ReplyDelete
  8. तमाम दलीलों के बावजूद इस सच को झुठलाना संभव नहीं| वैसे, परिवर्तन की बयार कई जगहों पर बहती हुई दिखने भी लगी है| बधाई गोवन्द भाई|

    ReplyDelete
  9. आपकी पोस्ट की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी है ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/372.html

    ReplyDelete
  10. बहुत हे मार्मिक अभिव्यक्ति..आज की समाजिक स्थिति पर बहुत तीखा कटाक्ष ..

    ReplyDelete