मैं बैठा देखता रहूँ तुझे कि जितने जिन्दगी में मेरे पल न हो,
बैठी रहो तुम मेरे कंधे पर सर रख के ऐसे कि शाम के हो जाने की हलचल न हो,
छिप जायें सूरज की वो निराली घटा कि पंछियों की भी न चिलपिल हो,
सुला दूं तुम्हें मैं वैसे ही बैठे-बैठे और चांदनी की बस हलकी सी झिलमिल हो ||
काश कभी हो ऐसा.......
माँ झट्क कर झाड दे धूप की चादर,
मैं उस चादर में फिर सिमट कर तेरे सपनों में खो जाऊं,
माँ उठती रहें मुझे बार-बार पर मैं तब न उठ पाऊं,
उठू लेकिन जब भी मैं तुम हो पास मेरे और मैं फिर तुझमें सिमट जाऊं ||
काश कभी हो ऐसा........
हो आसमान में बादलों की घटा कुछ ऐसे,
सारी दुनिया तुझे उसमें नजर आये,
लाकर डाल दूं सारी खुशियाँ तेरे दामन में ऐसे,
उन्हें समेटने में तेरी उम्र निकल जाए ||
काश कभी हो ऐसा........
जब मैं गुज़रू किसी प्रलय से तेरे साथ,
तो जल जाऐं मेरे वस्त्र मेरा शरीर,
लेकिन एक तारा बचा रह जाए मेरी बाहों में,
तब जन्नत नसीब हो जाये मुझे जब मिल जाये ऐसा दिन तेरी बाहों में ||
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