{ May God Bles You All}

Sunday, December 19, 2010

जमीं से उठाकर नजर जरा देखो यारों...........



























जमीं से उठाकर नजर आसमाँ को देखो यारों,
मंजिल मिल ही जाएगी कोशिश करके तो देखो यारों.

सीधी ऊँगली से घी न निकले अगर तो,
ऊँगली जरा सी टेड़ी करके तो देखो यारों.

जिन्हें किस्मत की दास्तानों से न हो मतलब,
बस अपने आप पर ही हो भरोसा,
कहानी जरा अपनी भी पूछ लिया करो यारों.

कभी खुदा से सवाल करना अकेले में,
कभी खुदा को जवाब देके देखना यारों.

यूँ तो आसमाँ में भी छेद नहीं होता,
पर इक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों.

जानना चाहो अगर क्या खोया क्या पाया,
कभी पीछे मुड़ के देखो यारों.

जमीं से उठाकर नजर आसमाँ को देखो यारों,
जीत मिल ही जाएगी कोशिश करके तो देखो यारों,
जीत मिल ही जाएगी कोशिश करके तो देखो यारों..........

Tuesday, December 14, 2010

मासूम की पुकार...........



























सोचती हूँ कि आज आज़ाद हूँ मैं,
लेकिन फिर भी डर-डर कर आगे बढ़ पाती हूँ मैं.
खौफ में घर से बाहर निकलना,
बस यूँ ही सहमी हुई सी रह पाती हूँ मैं.
कहने को तो मैं भी अब आज़ाद हूँ लेकिन,
न जाने क्यूँ, आज भी, रौशनी में,
अपनी ही परछाई से डर जाती हूँ मैं.

काली भयावह रातों में भी अब मुझे,
बस यही डर सताता है कि,
क्या होगा कल फिर से इसी गरीबी में,
बस यही सोचकर रात भर आँखों से नीर बहाती हूँ मैं,
हर पल साहूकारों की मार और फटकार से,
अखियों को जलमग्न कर जाती हूँ मैं,
कहने को तो इस देश में आज़ाद हूँ मैं भी,
न जाने क्यूँ, आज भी, रौशनी में,
अपनी ही परछाई से डर जाती हूँ मैं.

स्कूल जाते, पानी भरने या काम पर जाते,
यही ख्याल आता है अब तो,
क्या ले जायेगा मुझे भी उठाकर बीच रास्ते से कोई,
डर कर फिर धीरे-धीरे चल पाती हूँ मैं,
डर कर भी जल्दी से आगे बढ़ना चाहा,
लेकिन फिर भी बढ़ नहीं पाती हूँ मैं,
सहेलियां कहती है कि आज़ाद हैं हम भी,
लेकिन न जाने क्यूँ, आज भी, रौशनी में,
अपनी ही परछाई से डर जाती हूँ मैं.

ब्लात्कार और दरिन्दगी की हदें,
ख़बरों में रोज़ पढ़ लेती हूँ मैं,
कहाँ से आये फिर उम्मीद की किरण,
इसी बात को फिर दिल में दबा लेती हूँ मैं,
बेटी, बहन, पत्नी और माँ,
सब रिश्तों को निभाती हूँ मैं,
अपने मन कि उलझन को फिर भी,
किसी को न कह पाती हूँ मैं,
अम्मू कहती है कि आज़ाद है हम,
लेकिन न जाने क्यूँ, आज भी, रौशनी में,
अपनी ही परछाई से डर जाती हूँ मैं.

                                          (गोविन्द सलोता)        

Monday, December 6, 2010

लकीर ख्वाहिशों की..........

तुम्हारे हाथों में मेरी कोई लकीर है तो बोलो,
यूँ तो ख्वाहिशों का कोई घर नहीं होता.

ये बेहाल ज़िन्दगी मुझे ले आई कहाँ,
कि बिन तेरे अब पूरा कोई सफ़र नहीं होता.

बुझे हुए चिरागों का आज क्या और कल क्या,
हर रोज़ चलने वालों का कोई मंज़र नहीं होता.

मिला तो मैं भी अपनी जिंदगी में कई लोगों से,
सिर्फ मिलने से तो कोई दिल के करीब नहीं होता.

मैं सोच सकता हूँ तुम्हारे बारे में पर सोचने का क्या,
जब तक कोई हाथ न पकडे हमसफ़र नहीं होता.

इसीलिए पूछा कि तुम्हारे हाथों में मेरी कोई लकीर है तो बोलो,
यूँ तो ख्वाहिशों का कोई घर नहीं होता.

Call me when u feel alone...........

If one day you feel like crying...
Call me.
I don't promise that I will make you laugh,
But I can cry with you.

If one day you want to run away--
Don't be afraid to call me.
I don't promise to ask you to stop...
But I can run with you.

If one day you don't want to listen to anyone...
Call me.
I promise to be there for you.
And I promise to be very quiet.

But if one day you call...
And there is no answer...
Come fast to see me.
Perhaps I need you.

yes i miss u everysecond ..
and i really mean this.....

काश कभी हो ऐसा........



काश कभी हो ऐसा........
मैं बैठा देखता रहूँ तुझे कि जितने जिन्दगी में मेरे पल न हो,
बैठी रहो तुम मेरे कंधे पर सर रख के ऐसे कि शाम के हो जाने की हलचल न हो,
छिप जायें सूरज की वो निराली घटा कि पंछियों की भी न चिलपिल हो,
सुला दूं तुम्हें मैं वैसे ही बैठे-बैठे और चांदनी की बस हलकी सी झिलमिल हो ||

काश कभी हो ऐसा.......
माँ झट्क कर झाड दे धूप की चादर,
मैं उस चादर में फिर सिमट कर तेरे सपनों में खो जाऊं,
माँ उठती रहें मुझे बार-बार पर मैं तब न उठ पाऊं,
उठू लेकिन जब भी मैं तुम हो पास मेरे और मैं फिर तुझमें सिमट जाऊं ||

काश कभी हो ऐसा........
हो आसमान में बादलों की घटा कुछ ऐसे,
सारी दुनिया तुझे उसमें नजर आये,
लाकर डाल दूं सारी खुशियाँ तेरे दामन में ऐसे,
उन्हें समेटने में तेरी उम्र निकल जाए ||

काश कभी हो ऐसा........
जब मैं गुज़रू किसी प्रलय से तेरे साथ,
तो जल जाऐं मेरे वस्त्र मेरा शरीर,
लेकिन एक तारा बचा रह जाए मेरी बाहों में,
तब जन्नत नसीब हो जाये मुझे जब मिल जाये ऐसा दिन तेरी बाहों में ||