तुम्हारे हाथों में मेरी कोई लकीर है तो बोलो,
यूँ तो ख्वाहिशों का कोई घर नहीं होता.
ये बेहाल ज़िन्दगी मुझे ले आई कहाँ,
कि बिन तेरे अब पूरा कोई सफ़र नहीं होता.
बुझे हुए चिरागों का आज क्या और कल क्या,
हर रोज़ चलने वालों का कोई मंज़र नहीं होता.
मिला तो मैं भी अपनी जिंदगी में कई लोगों से,
सिर्फ मिलने से तो कोई दिल के करीब नहीं होता.
मैं सोच सकता हूँ तुम्हारे बारे में पर सोचने का क्या,
जब तक कोई हाथ न पकडे हमसफ़र नहीं होता.
इसीलिए पूछा कि तुम्हारे हाथों में मेरी कोई लकीर है तो बोलो,
यूँ तो ख्वाहिशों का कोई घर नहीं होता.
Monday, December 6, 2010
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बहुत खूबसूरती से लिखे हैं दिल के जज़्बात ....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
shandar prastuti .bahut sahi kaha -mila to main bhi apni jindgi me kai logo se ....''best of luck .likhte rahiye .
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