<<<<<एक लम्हा एक पल>>>>>
छू लूं मैं भी अब आसमां को, बस यही मंजर अब नजर आता है...........
काश! कि निकल आये अब किसी कौने से रौशनी की किरण,
क्यूँ ये सर बार बार अँधेरे में टकराता है,
न जाने कौन सा है वो लम्हा जो मुझे पल पल सताता है...........
चाहता हूँ कि मंजिल अब आ जाए नज़रों के सामने,
मगर ये काश! भी तो कमबख्त काश ही रह जाता है,
न जाने कब आएगा वो लम्हा जो मुझे पल पल सताता है...........
कैसा है वो एक लम्हा जो मुझे पल पल सताता है,
सोच में रहता हूँ, न जाने यह मेरा दिल क्या चाहता है,छू लूं मैं भी अब आसमां को, बस यही मंजर अब नजर आता है...........
काश! कि निकल आये अब किसी कौने से रौशनी की किरण,
क्यूँ ये सर बार बार अँधेरे में टकराता है,
न जाने कौन सा है वो लम्हा जो मुझे पल पल सताता है...........
चाहता हूँ कि मंजिल अब आ जाए नज़रों के सामने,
मगर ये काश! भी तो कमबख्त काश ही रह जाता है,
न जाने कब आएगा वो लम्हा जो मुझे पल पल सताता है...........
Bahut khub likha aap bdhai k patr hai, sach hi kaha aap ne aksar kuch lamhe hume satate h or hme unka karan bhi ptaa nhi chlta hai ,mere blog pr aap ka swagat hai ,uma chaudhary
ReplyDeletebahut sahi aur sachhi baat hai ismein..hum kehte hain kaash mujhe yeh mil jaaye woh mil jaaye aur aakhir mein yeh kaash ..kaash hi reh jata hai.....gr8 1
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